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30 Days Festival Competition लेखनी कहानी -17-Oct-2022 गणगौर का पर्व (भाग 25

                शीर्षक। :- गणगौर का पर्व


गणगौर का पर्व मुख्य रूप से राजस्थान का मनाया जाने वाला पर्व है। परन्तु अब यह पर्व राजस्थान समेत उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, हरियाणा और गुजरात जैसे उत्तरीय पश्चिम इलाके में मनाया जाता है।इस दिन गणगौर माता यानी माता पार्वती की पूजा की जाती है तथा उनका आशीर्वाद लिया जाता है।पति की लंबी उम्र के लिए इस व्रत को रखा जाता है।


                 हमारा देश  विविधताओं का देश है  यहाँ पर अपने अपने प्रदेशौ के हिसाब से मनाये जा ते हों। और यहां कई ऐसे अनोखे त्यौहार और पर्व मनाए जाते हैं जो अपने आप में ही बहुत विशेष होते हैं। ऐसा ही एक पर्व है जो महिलाओं के लिए बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है जिसे भारत के उत्तरी प्रांतों में ज्यादातर मनाया जाता है। यह पर्व है गणगौर व्रत, ‌जिस दिन महिलाएं अपने पति से छुपकर व्रत करती हैं और गणगौर माता यानी माता पार्वती की पूजा करके अपने पति की लंबी उम्र के लिए कामना करती हैं। 


            गणगौर का पर्व व ब्रत हर वर्ष  चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया  को होता है।  जानकार बताते हैं कि, गणगौर का मतलब गण शिव और गौर माता पार्वती से है।  इसलिए इस दिन माता पार्वती की पूजा होती है।

               यह पर्व महिलाओं और कुंवारी कन्याओं के लिए  बहुत महत्वपूर्ण मानी जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार,‌इस‌ दिन को प्रेम का जीवंत उदाहरण माना जाता है क्योंकि भगवान शिव ने माता पार्वती को और माता पार्वती ने संपूर्ण स्त्रियों को सौभाग्यवती होने का वरदान दिया था। जो सुहागिन गणगौर व्रत करती हैं तथा भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा करती हैं उनके पति की उम्र लंबी हो जाती है।

              इस दिन  जो कुंवारी कन्याएं गणगौर व्रत करती हैं उन्हें मनपसंद जीवनसाथी का वरदान प्राप्त होता है। इस पर्व को 16 दिन तक लगातार मनाया जाता है और गौर का निर्माण करके पूजा की  जाती है।

                           इस ब्रत की कथा के अनुसार एक बार भगवान शिव और माता पार्वती वन में गए। और चलते-चलते वे दोनों बहुत ही घने वन में पहुंच गए। तब माता पार्वती ने भगवान शिव से कहा कि हे भगवान मुझे प्यास लगी है। इस पर भगवान शिव ने कहा कि देवी देखों उस ओर पक्षी उड़ रहे हैं उस स्थान पर अवश्य ही जल मौजूद होगा। इसलिए आप वहाँ चली जाओ।

                 जब पार्वती जी वहां गई, उस जगह पर एक नदी बह रही थी। पार्वती जी ने पानी की अंजलि भरी तो उनके हाथ में दूब का गुच्छा आ गया। जब उन्होंने दूसरी बार अंजलि भरी तो टेसू के फूल उनके हाथ में आ गए। और तीसरी बार अंजलि भरने पर ढोकला नामक फल हाथ में आ गया।

               ऐसा देखकर माता पार्वती जी के मन में कई तरह के विचार उठने लगे। परन्तु उनकी समझ में कुछ नहीं आया। उसके बाद भगवान शिव  के पास गयी और यह वृतान्त बताकर इसका कारण पूछा ?

                पार्वती  की शंका सुनकर  भोलेनाथ ने उन्हें बताया कि आज चैत्र शुक्ल तीज है। विवाहित महिलाएं आज के दिन अपने सुहाग के लिए गौरी उत्सव करती हैं। गौरी जी को चढ़ाएं गए दूब, फूल और अन्य सामग्री नदी में बहकर आ रहे थे।

           इस पर पार्वती जी ने विनती की कि हे स्वामी दो दिन के लिए आप मेरे माता-पिता का नगर बनवा दें। जिससे सारी स्त्रियां वहीं आकर गणगौर के व्रत को करें। और मैं खुद ही उनके सुहाग की रक्षा का आशीर्वाद दूं।

                      भगवान शंकर ने ऐसा ही किया। थोड़ी देर में ही बहुत सी स्त्रियों का एक दल आया तो पार्वती जी को चिन्ता हुई और वो महादेव जी से कहने लगी कि हे प्रभु मैं तो पहले ही उन्हें वरदान दे चुकी हूं। अब आप अपनी ओर से सौभाग्य का वरदान दें।

                भोलेनाथ बहुत ही शीघार प्रसन्न होने वाले देवता है उन्होने पार्वती  के कहने पर उन सभी स्त्रियों को सौभाग्यवती रहने का वरदान दिया। भगवान शिव और माता पार्वती ने जैसे उन स्त्रियों की मनोकामना पूरी की, वैसे ही भगवान शिव और गौरी माता इस कथा को पढ़ने और सुनने वाली कन्याओं और  व स्त्रीयौ की मनोकामना पूर्ण करेंगे।

30 Days Festival  Competition हेतु रचना।

नरेश शर्मा" पचौरी "

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5 Comments

Gunjan Kamal

18-Nov-2022 09:40 AM

शानदार

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Supriya Pathak

12-Nov-2022 01:07 PM

Bahut khoob

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Khushbu

11-Nov-2022 04:05 PM

शानदार

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